वैष्णव कुल में जन्मे अमित शाह भी नहीं हैं इस पाप से अछूते।
मनीष चतुर्वेदी ‘‘मनु की कलम से’’
माना जाता है कि व्यक्ति से समाज का निर्माण होता है और समाज से राष्ट का अर्थात स्पष्टतौर पर इस मान्यता को हम एकता का सूत्र कह सकते हैं। किंतु यदि यही सूत्र विघटित हो जाये और समाज अलग-अलग वर्गों में बंटकर एक दूसरे के प्रति द्वेषभाव रखने लगे तो निश्चित ही इसका असर हमारे निजी जीवनों पर तो पड़ता ही है साथ ही हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक धरोहरों और संस्कारों पर भी पड़ता है।
कुछ यही विघटनकारी सोच आज हमारी आराध्य, हमारे धर्मक्षेत्र, हमारे तीर्थ स्थलों और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी मां स्वरुप नदियों पर भी भारी पड़ती नजर आ रही है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है मां यमुना के स्वरुप की दुर्दशा अर्थात यमुना प्रदूषण।
जिसे देखकर मां यमुना की गोद में पलने वाले ही नहीं बल्कि मां श्री यमुना महारानी के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा रखने वाले भक्तगण भी अश्रु बहाने को मजबूर हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि एक बच्चे को यदि मां से जबरन दूर कर दिया जये तो बच्चा रोने लगता है।
कुछ ऐसा ही हाल आज मां श्री यमुना महारानी और उनके पुत्र व भक्तगणों का है, जो तिल-तिल कर जल रहे हैं, तड़प रहे हैं, रो रहे हैं लेकिन उनके आंसू पौंछने वाला कोई नहीं। और इस सबका प्रमुख कारण है कई दशकों तक सरकार में रहने वाले राजनैतिक दल और वर्तमान में सनातन धर्म के पहियों पर अपनी सत्ता के रथ को दौड़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी। जो कि आज मां श्री यमुना महारानी के प्रदूषण, उनके स्वरुप की दुर्दशा को लेकर न सिर्फ मौन है बल्कि स्पष्टतौर पर मां श्री यमुना महारानी और मथुरा नगर के तीर्थ स्थलों की उपेक्षा कर रही है।
बात चाहे मुख्यमंत्री योगी की हो, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हो या फिर वैष्णव परिवार में जन्में गृहमंत्री अमित शाह की।
ये तीनों ही मां श्री यमुना महारानी के प्रति अपनी उदासीन और उपेक्षा भरी कार्यशैली से अछूते नहीं रह पाये हैं। जिसे धार्मिक भाषा में यदि पाप कहा जाये तो संभवतः कुछ गलत नहीं होगा।
योगी और मोदी दोनों ही जब अयोध्या जाते हैं तो सरयू जी के गुणगान करते हैं और काशी जाते हैं तो खुद को मां गंगा का पुत्र कहने से नहीं हिचकते, महाआरती का आयोजन होता है उसमें शामिल होते हैं। लेकिन जब मथुरा आते हैं, विशाल सभाऐं करते हैं तो राजस्थान में जन्मीं कृष्ण भक्त मीरा को तो याद करते हैं लेकिन श्रीकृष्ण की पटरानी श्री यमुना महारानी का जयकारा तो दूर की बात है, मां श्री यमुना महारानी का नाम भी इनकी जुबान पर नहीं आता।
इतना ही नहीं योगी जी मथुरा दर्जनों बार आ चुके हैं लेकिन आज तक इन्हें मथुरा के यमुना तट पर जाकर ब्रज के प्रथम यमुनातीर्थ श्री विश्राम घाट पर जाकर श्री यमुना महारानी की पूजा अर्चना करने का समय तक नहीं मिलता या फिर ये कहें कि पूजा करना तो दूर की बात राजकीय भाषा में कहें तो निरीक्षण करने का भी समय नहीं मिलता।
गृहमंत्री अमित शाह चुनावी सभा करने के लिए मथुरा तो आते हैं लेकिन श्री यमुना महारानी की याद उन्हें भी नहीं आती। यानि कि बात करते हैं ब्रज के विकास की और ब्रज में आकर ब्रज के स्वामी की पटरानी का नाम भी इनकी जुबान पर नहीं आता तो अब यह पाप नहीं तो और क्या है ?
स्वयं को सनातन धर्मध्वजा के वाहक मानने वाले इन तीनों शिखर पुरुषों को आत्ममुग्ध कहें या फिर स्थानीय राजनेताओं के हाथों की कठपुतली ये तो स्वयं ये ही जानते हैं।
विचारणीय विषय से भी है कि धर्मध्वजा के वाहक स्वयं मां श्री यमुना के तट पर आना नहीं चाहते या फिर सामाजिक द्वेष पाले बैठे कपूतों, कुल कलंकियों का पाप इन्हें यमुना तट पर मां यमुना की सुध लेने के लिए आने नहीं देता इसका उत्तर भी स्वयं यही तीनों महानुभाव दे सकते हैं।
यही कारण रहा लगभग कई दशक से मां श्री यमुना महारानी की इस दुर्दशा को दूर करने का संकल्प लिए धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए प्रयासरत, केन्द्र और प्रदेश की सरकारों द्वारा की जा रही श्री यमुना महारानी की उपेक्षा से आह्त यमुनापुत्र मुकेश बालकिशन चतुर्वेदी को गुजरात में बैठे द्वारिकाधीश प्रभु से यमुना प्रदूषण मुक्ति की गुहार पदयात्रा के माध्यम से गुहार लगानी पड़ी।
जिसके लिए यमुनापुत्र मुकेश बालकिशन चतुर्वेदी निःस्वार्थ भाव से दिन रात पैदल चलते हुए लगभग 1350 से 1400 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर द्वारिका पहुंचे और फिर भेंट द्वारिका, जहां उन्होंने यमुना प्रदूषण मुक्ति को लेकर अपनी गुहार पत्रिका प्रभु श्री द्वारिकाधीश के चरणों में अर्पित की।
अंत में एक समालोचक होने के नाते एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि नरेन्द्र मोदी, अमितशाह और योगी आदित्यनाथ का मथुरा में आकर भी यमुनातट तक न पहुंच पाना, श्री यमुना महारानी का नाम तक इनकी जुबान पर न आना, अनजाने में ही सही लेकिन इनके द्वारा किया जा रहा एक पाप तो है ही साथ ही एक कूटरचित षडयन्त्र की ओर भी इशारा करता है।
सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमितशाह और योगी आदित्यनाथ जैसे राजनेता जो कि किसी भी क्षेत्र में जाकर बोलने से पहले वहां की सामाजिक, भौतिक, धार्मिक, एवं साहित्यिक स्थिति का पूर्ण अध्ययन कर लेते हैं और वहां जाकर वही बिन्दु उनके भाषण के आधार भी होते हैं, लेकिन मथुरा आने पर उनके द्वारा मां श्री यमुना की उपेक्षा करने जैसी भूल आखिर कैसे हो सकती है ?
निश्चिततौर पर यह विचारणीय विषय है जो कि किसी स्थानीय राजनेताओं अथवा सामाजिक ठेकेदारों द्वारा रचा गया एक षडयंत्र है जिसके सहारे वह किसी वर्ग विशेष को टारगेट कर अपना हित साधना चाहते हैं। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उस समय भी देखने को मिला था जब मथुरा आये योगी आदित्यनाथ द्वारा मथुरा का नजरअन्दाज कर वृन्दावन को ही श्रीकृष्ण की जन्मस्थली बता दिया था। इसके अलावा संपूर्ण ब्रजभूमि को तीर्थ स्थल घोषित करने के स्थान पर ब्रज को टुकड़ों में बांट दिया गया था।
इस पूरे घटनाक्रम में चौंकाने वाली बात ये रही थी कि मथुरा पुरी के टाउन एरिया को तो तीर्थ स्थल घोषित कर दिया गया था लेकिन
जिस मथुरा नगर में यमुना तट पर वेदोक्त तीर्थ श्रीविश्रामघाट स्थित है,
जहां मां श्री यमुना का कृष्ण कालीन मन्दिर स्थापित है,
जो कंसवध लीला से सीधे तौर पर जुड़ा है,
जहां मां श्री यमुना महारानी और धर्मराज का विश्व का एकमात्र मन्दिर स्थापित है
जहां कि मां यमुना प्रत्यक्ष रुप में दर्शन देती हैं,
जहां कि हर वर्ष यमद्वितीया के स्नान को देशभर से लाखों भक्त स्नान करने आते हैं,
उसी मथुरा नगर को तीर्थ स्थल की श्रेणी से दूर रखा गया था जिसके चलते मथुरा में आज भी अण्डा, मांस और शराब की खुलकर बिक्री की जा रही है।
गौर करने वाली बात ये भी है कि ये पाप उस दौर में हुआ जब मथुरा के ही विधायक श्रीकांत शर्मा प्रदेश सरकार में बतौर उर्जा मंत्री के रुप में शामिल थे।
स्वयं को श्री कृष्ण की अनन्य भक्त कहने वाली हेमा मालिनी मथुरा से ही दो बार की सांसद हैं।
अब इस पूरे घटनाक्रम कों षडयन्त्र नहीं तो और क्या कहा जायेगा ?
जाने-अनजाने ही सही लेकिन इसे पाप नहीं कहा जाये तो आखिर क्या कहा जायेगा ?
ऐसे में सवालों की लंबी फेहरिस्त का होना भी स्वाभाविक है और वो सवाल हैं कि………
आखिर मोदी-शाह और योगी जी इस पाप के बोझ को कब तक अपने सिर पर ढोते रहेंगे ?
आखिर कब मां श्री यमुना प्रदूषण से मुक्त हो पायेंगी ?
आखिर कब तक मां श्री यमुना महारानी का अलौकिक स्वरुप उन्हें पुनः प्राप्त होगा ?
आखिर कब श्री द्वारिकाधीश प्रभु मुकेश बालकिशन चतुर्वेदी द्वारा लगायी गयी गुहार सुध लेंगे ?