क्या इस बार भी माँ यमुना को भूल जायेंगे योगी आदित्यनाथ !

दर्जनों बार मथुरा आये योगी आदित्यनाथ कभी नहीं गये तीर्थ विश्राम घाट।

यमुना प्रदूषण मुक्ति को लेकर नहीं ली सुध, उपेक्षा का शिकार रहे यमुनातट स्थित तीर्थस्थल।

मनीष चतुर्वेदी ‘‘मनु’’ की कलम से……….

बुद्धवार अर्थात 27 मार्च 2024 को एक बार फिर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में पहुंचेंगे। जहां से वह चुनावी रण 2024 का शंखनाद भी करेंगे।
लेकिन उनके इस दौरे और चुनावी शंखनाद को लेकर एक बड़ा सवाल है जो कि हर बार की तरह मेरे मन में उत्पात मचाये हुए है कि और वो सवाल ये है कि क्या इस बार भी योगी आदित्यनाथ माँ श्री यमुनामहारानी का स्मरण करना भूल जायेंग ?
क्या इस बार भी उन्हें यमुना प्रदूषण अर्थात मां श्री यमुना महारानी के जल स्वरुप की दुर्दशा याद आयेगी ?

ऐसा मैं इसलिए पूछ रहा हूँ कि यदि बीते कालखण्ड पर नजर डालें तो सनातन धर्मध्वजा वाहक के रुप में स्थापित उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे पहले सीएम हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक दर्जन से भी ज्यादा मथुरा नगरी के दौरे किये हैं।  इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने कई बार श्रीकृष्ण जन्मस्थान के दर्शन किए तो कई बार वृन्दावन में ठा0 बांके बिहारी मन्दिर का भी भ्रमण किया लेकिन इन सभी यात्राओं के दौरान एक बात चौंकाने वाली अवश्य रही कि योगी आदित्यनाथ एक बार भी कृष्ण की पटरानी माँ श्री यमुना महारानी की की विश्वप्रसिद्ध महाआरती में शामिल नहीं हुए इतना ही नहीं आरती में शामिल होना तो दूर की बात योगी आदित्यनाथ ने मथुरा के प्रमुख तीर्थ श्री यमुना महारानी के कृष्णकालीन मन्दिर के दर्शन करना तक उचित नहीं समझा।
गौरतलब है कि तीर्थ विश्रामघाट महज़ एक यमुना घाट ही नहीं बल्कि इस पवित्र स्थल से भगवान श्री कृष्ण से ठीक उतना ही संबध है जितना कि उनका श्रीकृष्ण जन्मस्थान से।

सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण का अवतार ब्रजवासियों को क्रूर शासक कंस के अत्याचारों से बचाने और उसका वध करने के लिए हुआ था जिसके लिए कंस के कारागार में जन्म लिया और अपने अवतार की आधारभूत की लीला अर्थात कंस वध को परिणाम तक पहुंचाने के बाद अपने भाई बलदाऊ सहित इसी विश्रामघाट पर विश्राम किया था जिसके कारण ही इस घाट का नाम विश्रामघाट पड़ा। जो कि यमुनोत्री के बाद एक मात्र श्री यमुना महारानी के तीर्थस्थान के रुप में विद्यमान है।
इतना ही नहीं यही वह स्थान है जहां यमराज और यमुना महारानी का विश्व का एकमात्र मन्दिर स्थापित है। जहां हर वर्ष विश्वप्रसिद्ध यमद्धितीया स्नान का विशेष महत्व है।  
चौंकाने वाली बात यही है कि इतने महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल को प्रदेश का मुखिया आखिर कैसे भूल सकता है वो भी तब जबकि दर्जनों बार वह श्रीकृष्ण की इस भूमि पर भ्रमण कर चुका हो और जिसकी पहचान भी सनातन धर्मध्वजा वाहक की हो।
निश्चिततौर पर यह कोई एक संयोग तो नहीं हो सकता। लेकिन सवाल ये भी है कि आखिर ये प्रयोग भी है तो किसका है ?
आखिर वह कौन लोग हैं ? जो कि मुख्यमंत्री को श्री यमुना महारानी के कृष्णकालीन मन्दिर तक नहीं पहुंचने देना चाहते।

आखिर वह कौन षडयन्त्रकारी हैं जो कि माँ श्री यमुना के प्रदूषण को और यमुना के स्वरुप की दुर्दशा को मुख्यमंत्री की नजरों से छुपाना चाहते हैं।
आखिर ये वो कौन सी कलम है जो कि मुख्यमंत्री के भाषण की स्क्रिप्ट लिखते समय मथुरा में ही रहकर मथुरा ही नहीं अपितु करोड़ों-करोड़ों की आस्था का केन्द्र बिन्दु मोक्षदायिनी माँ श्री यमुना महारानी का स्मरण मात्र भी नहीं लिख पाती।
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मीराबाई की जयन्ती पर मथुरा आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में भी देखा व सुना जा सकता था जिसमें मीराबाई की जय तो हुई, लेकिन ब्रज की आराध्या माँ श्री यमुना महारानी का जयकारा तो दूर की बात उनका जिक्र तक नजर नहीं आया।
ये वही प्रधानमंत्री हैं जो गंगा को तो अपनी माँ मानते हैं और उसकी प्रदूषण की पीड़ा को भी महसूस करते हैं लेकिन माँ श्री यमुना महारानी को जानते और पहचानते तक नहीं, बल्कि मथुरा में आकर श्रीयमुना महारानी का जिक्र तक उनकी जुबान पर नहीं आता। ऐसे में सवालों की फैहरिस्त का लंबी होना स्वाभाविक है और सवाल ये हैं कि :-

आखिर कौन हैं वो षडयंत्रकारी ? जो कि मथुरा नगर तीर्थ के अस्तित्व को समूल नष्ट करने पर उतारु हैं।
आखिर कौन हैं वो लोग ? जिनके कारण मथुरा नगर तीर्थ के पंडा-पुरोहितों को नकारने, उनकी उपेक्षा करने और उनके अस्तित्व को नष्ट करना चाहते हैं।
आखिर कौन हैं वो लोग जो कि मथुरा पुरी को टुकड़ों में बांट कर अपने स्वार्थ की राजनीति को साधने में लगे हैं जिसके चलते आज मथुरा-वृन्दावन की पहचान को अलग-अलग साबित करते हुए नदी के दो किनारों की तरह स्थापित किया जा रहा है।
दुर्भाग्य का विषय है कि गोवर्धन हो या वृन्दावन आदि स्थानों में स्थापित परिक्रमा मार्गों के विकास के लिए शासन द्वारा करोड़ों रुपये आबंटित किये जाते हैं लेकिन पुराणों में वर्णित मथुरापुरी की पंचकोसीय परिक्रमा का विकास तो दूर की बात उसे अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए शासन और प्रशासन ही नहीं बल्कि शासन द्वारा स्थापित उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद भी कुंभकर्णीय नींद में सोया हुआ है और पंचकोसीय परिक्रमा की घनघोर उपेक्षा करने के पाप से ग्रसित है।
निश्चिततौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद को भी इन सवालों का जबाब देना होगा।
उन्हें समझना होगा कि पुराणों में उल्लेखित मथुरापुरी को आप ओछी और स्वार्थपरक राजनीति के तहत खण्ड-खण्ड करने का जो पाप कर रहे हैं वह अक्षम्य है जिसके लिए मथुरा नगर तीर्थ में रह रहे माँ श्री यमुना महारानी के भक्त, पंडा-पुरोहित समाज/ब्राह्मण समाज, व्यापारी समाज और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से उनसे जुड़े सैंकड़ों-सैंकड़ों परिवार जिनका कि तीर्थनगरी से परिवार के भरणपोषण संबधी जुड़ाव है वह आपको इन षडयन्त्रकारियों अथवा शासन-प्रशासन के अधिकारियों को कभी क्षमा नहीं करेगा।

Author

Leave a Reply

Verified by MonsterInsights