लोकतंत्र के शर्मनाक 31 साल, सनातन का शोषण होता रहा – सरकारें देखती रहीं।

संपादकीय.. मनीष चतुर्वेदी की कलम से………

इतिहास गवाह है कि जब-जब मुगल आक्रान्ताओं को मौका मिला उन्होंने न सिर्फ भारत देश को लूटा बल्कि जब सत्ता में आये तो मन्दिरों को मस्जिद में बदलने का कुचक्र भी रचा और बदला भी।
कुछ बदल गये और कुछ अधूरे रह गये। जो अधूरे रह गये उनका समय रहते जीर्णोद्धार करा दिया गया जिसमें सोमनाथ मन्दिर से बेहतर उदाहरण और क्या होगा लेकिन जो बदल गये उन्हें वापस हासिल करने के लिए सनातन धर्माबलम्बियों को न जाने कितने बलिदान देने पड़े सदियां बीत गयीं लेकिन अतिक्रमण की काली छाया से आजादी न मिल सकी।
हालात तब और ज्यादा दर्दनाक और शर्मनाक हो गये जब आजाद भारत में आजाद भारत की नयी सरकारों ने भी उन्हीं मुगल आक्रान्ताओं के कुकर्मों का मौन समर्थन करते हुए हिन्दुओं के अपने ही स्थानों को हासिल करने के लिए कोई इच्छा नहीं जतायी बल्कि यदि ये कहें कि वोट बैंक की राजनीति के चलते तत्कालीन सरकारों द्वारा सनातनियों के साथ उपेक्षित व्यवहार किया जाने लगा तो ये कहना यह गलत नहीं होगा।

जी हां मैं बात कर रहा हूं आजादी के बाद कई दशकों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस सरकार की जिसने वोट बैंक की राजनीति के लालच में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को जन्म दिया और हिन्दुओं के देश को धर्मनिरपेक्ष देश का टैग लगाकर लगातार हिन्दुओं का ही शोषण किया। जिसके परिणाम स्वरुप समय बीतने के साथ सनातन धर्माबलम्बियों के धर्मस्थानों को तुष्टिकरण की भेंट चढ़ा दिया।
इतना ही नहीं जब हिन्दू पक्ष ने न्यायपालिका के माध्यम से न्याय हासिल करने की कोशिश की तो वहां भी तत्कालीन सरकारों ने हर तरह से रोढ़े अटकाने की कोशिश की।
मुस्लिम तुष्टिकरण के लालच में ये सरकारें इतनी गुलाम हो गयीं कि कोर्ट में जन-जन के आराध्य और भारत देश की आत्मा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को ही काल्पनिक कह डाला और उनके अस्तित्व को ही चुनौती दे डाली बाबजूद ये कहते नहीं थकते कि हम ही सच्चे हिन्दू हैं, जनेउ धारी हैं, मन्दिर-मन्दिर हम भी जाते हैं।
अब इसे राजनैतिक मजबूरी कहा जाए या फिर पाखंड या फिर सच्चा हिन्दुत्ववाद ये तो बस वही जानें।

किन्तु एक सच ये भी है कि सत्य को परेशान किया जा सकता है-हराया नहीं जा सकता।
जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण राममन्दिर के बाद अब ज्ञानवापी मामले में देखने को मिला है जबकि वाराणसी की जिला अदालत ने 31 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार सत्य का उजागर कर ही दिया और पूजा-अर्चना करने संबधी आदेश पारित किया है।

निःसन्देह आज का ये पल भी सनातन की उस नवचेतना का बोध कराता है जिस चेतना ने आज पूरा विश्व सनातनमय कर दिया है। आज हर सनातनी गर्व से कह सकता है कि वह सनातनी है, हिन्दू है।
और ये सब कुछ संभव हुआ राजनैतिक इच्छा शक्ति के कारण।
वो इच्छा शक्ति जिसमें न वोट बैंक की लालच की दलदल है और न तुष्टिकरण का जहर।
न सत्ता लोलुपता है और न किसी धर्म के प्रति असम्मान।
आज देश का प्रधान अपने धर्म के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धा दिखाने में नहीं हिचकिचाता तो प्रदेश का प्रधान भी आगे बढ़कर धर्मस्थलों की रक्षा करते हुए सभी संप्रदायों का सम्मान करता नजर आता है।

संभवतः इसी को सच्चा लोकतंत्र कहा जा सकता है।……वन्देमातरम्

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