मनीष चतुर्वेदी ‘‘मनु’’ की कलम से।
परिवार-वाद की कहानी को लेकर जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी हमेशा से ही इसकी विरोधी रही है वहीं दूसरी ओर यदि नजर डाली जाए तो देश का शायद ही कोई राजनैतिक दल ऐसा होगा जो कि परिवार-वाद के परंपरा से अछूता हो।
पूरब हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण जहां नजर डालो हर राजनैतिक दल का मुखिया एक ही परिवार नजर आता है जहां पार्टी से लेकर देश/प्रदेश के मुखिया की कुर्सी पर उसी राजनैतिक पार्टी के मुखिया अथवा उसके परिवार का व्यक्ति ही शीर्ष सिंहासन पर विराजमान होता रहा है और यही परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है।
ऐसे दौर में 26 नबंबर 2012 को जन्मी एक नयी पार्टी को देखने के बाद दिल्ली के लोगों को लगा कि भाजपा के बाद एक नाम और है जिसमें भाजपा की तरह इस राजनैतिक दल किसी एक परिवार का आधिपत्य नहीं रहेगा और देश की राजनीति को एक नयी दिशा मिलेगी।
जनता की इस उम्मीद के परिणाम भी आये और युवा भारत की युवा जनता ने उस पार्टी को दिल्ली जैसे प्रदेश में शीर्ष तक पहुंचाया जिस पार्टी को आज सभी ‘‘आम आदमी पार्टी’’ के नाम से जानते हैं।
परिवारवाद से इतर यह वही पार्टी थी जिसने दिल्ली में शीला दीक्षित जैसी प्रभावशाली लीडर और कांग्रेस जैसी राष्टीय पार्टी के अभेद किले में सेंध ही नहीं लगायी बल्कि पूरे किले पर एकतरफा कब्जा कर लिया।
लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि सत्ता पाकर राजमद न हो ये तो हो ही नहीं सकता। संभवतः आमआदमी पार्टी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
सत्ता के मद में चूर आप की सरकार जो कि दिल्ली को पीने का पानी पूरी तरह से निःशुल्क बांटने चली थी समय बीतने के साथ निःशुल्क शराब बांटने के लिए मशहूर होने लगी।
वी.आई.पी. कल्चर की धुर विरोधी रहे केजरीवाल लक्जरी सुख सुविधाओं के मामले में ब्राण्ड एंबेस्डर साबित हुए।
भ्रष्टाचार के विरोध के गर्भ से पैदा होने वाली आम आदमी पार्टी स्वयं भ्रष्टाचार के सागर में जेल का आनंद उठाती नजर आ रही है।
ठीक ऐसे ही बिहार के लालू यादव पर सीधे तौर पर हमला बोलने वाले अरविन्द केजरीवाल अब स्वयं लालू प्रसाद यादव के पदचिन्हों का अनुसरण करते नजर आ रहे हैं।
कल तक आरोप लगने पर नैतिकता का हवाला देते हुए जांच पूरी होते तक संवैधानिक पद से इस्तीफा देने के हिमायती केजरीवाल आज स्वयं जेल में रहकर सरकार चलाने पर आमादा हैं और इसे किसी कानून का उल्लंघन नहीं बताते।
ऐसा मैं नहीं कह रहा बल्कि केजरीवाल के जेल जाने के बाद राजनीति से दूर-दूर तक वास्ता न रखने वाली केजरीवाल की पत्नी की राजनीति में सक्रियता और केजरीवाल द्वारा जेल में रहकर ही बिना इस्तीफा दिए सरकार को संचालित करना इस बात को प्रमाणित करती है।
इतना ही नहीं रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित रैली में सजे मंच पर केजरीवाल की पत्नी उन्हीं सोनिया गांधी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर न सिर्फ बैठी नजर आयीं बल्कि हंसते खिलखिलाते उनके साथ बातचीत करती नजर आ रही थीं।
ऐसा नहीं कि आपस में बात करना कोई गुनाह है लेकिन ऐसे व्यक्तित्व से बात करना जिसे कल तक आप पानी पी पी कर कोसते रहे, जिनकी जगह संसद नहीं बल्कि जेल बताते रहे आज जब खुद जेल में पहुचे तो वही अच्छे लगने लगे।
कल तक जो परिवारवाद को लेकर लालू,मुलायम,उद्धव, फारुख अब्दुल्ला और गांधी परिवार जैसे राजनैतिक परिवारों और उनके मुखियाओं को देश के लोकतंत्र के लिए नासूर बताया करते थे वही केजरीवाल आज स्वयं तो अपने मंत्रियों के साथ जेल में हैं लेकिन पार्टी की बागडोर अघोषित रुप से उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को सौंपी हुई है।
अब केजरीवाल द्वारा आतिशी और सौरभ भारद्वाज जैसे युवा नेताओं के होते हुए पार्टी की बागडोर अपनी ही धर्मपत्नी को सौंपने के सिर्फ दो ही कारण हो सकते हैं…
पहला ये कि उन्हें अपने किसी भी साथी पर भरोसा नहीं ! उन्हें डर है कि यदि एक बार पार्टी की बागडोर उनके हाथ से चली गयी तो कहीं ऐसा न हो कि गुरु गुड़ रह जाये और चेला चीनी बन जाए उदाहरण के तौर पर अन्ना हजारे।
दूसरा कारण संगत का असर भी हो सकता है क्योंकि जिस तरह से गिरफ्तारी से बचने के लिए केजरीवाल कल के भ्रष्टाचारियों से मित्रता करते हुए इंडी गठबंधन में शामिल हुए जिसमें प्रमुख रुप से लालू प्रसाद यादव जैसे नेता भी शामिल हैं जिन्होंने अपने जेल जाने के दौरान कभी राजनीति की परछाई से भी दूर दूर तक वास्ता न रखने वाली पत्नी राबड़ी देवी को बिहार जैसे प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था ऐसे में आखिर लालू के अनुभवों का फायदा लेने से केजरीवाल पीछे कैसे रह सकते हैं लिहाजा ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि लालू के पदचिन्हों पर चलते हुए उनके अनुभवों का अनुसरण केजरीवाल कट्टर ईमानदारी के साथ करते नजर आ रहे हैं जिसके बारे में केजरीवाल स्वयं दावा करते हैं कि उनके जैसा कट्टर ईमानदार नेता पूरे देश में नहीं है।
अब ऐसे कट्टर ईमानदार नेता की कट्टर ईमानदारी पर भला शक कैसे किया जा सकता है !
लिहाजा अब ये दावे के साथ कहा जा सकता है कि परिवारवाद के घोर विरोधी रहे केजरीवाल ने अब कट्टर ईमानदारी के साथ परिवारवाद को आत्मसात कर लिया है और उन्होंने भी बिहार की तर्ज पर दिल्ली में भी एक और राबड़ी देवी के अवतार को अवतरित करने की तैयारी पूरी ईमानदारी के साथ कर ली है।
कुल मिलाकर अब सबकुछ दिल्ली प्रदेश की जनता के हाथ में है जिसे यू-टर्न के बेताज बादशाह और दिल्ली में राबड़ी अवतार के जनक केजरीवाल जैसा कट्टर ईमानदार नेता चाहिए या फिर कोई और है जिससे दिल्ली की जनता को उम्मीदें नजर आती हैं।
ये तो अब आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन एक बात तो तय है कि दिल्ली की जनता को एक बार फिर परिवारवाद का मीठा जहर फिलहाल तो पीना ही पड़ेगा वो भी कट्टर ईमानदारी के साथ, कट्टर ईमानदार के हाथ।
वन्दे मातरम्।