रोहिंग्या, बांग्लादेशी, पाकिस्तानी घुसपैठियों से विपक्ष को है प्यार, लेकिन हिन्दू शरणार्थियों पर तकरार।

आखिर कोई कैसे हो सकता है इतना बेशर्म !

मनीष चतुर्वेदी ‘‘मनु’’ की कलम से……….

CAA लागू होने के बाद विपक्ष की जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। उन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि मानो केन्द्र सरकार ने पहले से ही अपनी जमीन तलाश रहे विपक्ष का चैन से बैठना भी दुश्वार कर दिया है।

ऐसा लग रहा है कि मानो केन्द्र सरकार ने विपक्ष के आसन पर तीखी मिर्च बिछा दी हो या फिर धधकते हुए कोयले बिछा दिये हों।

ये कहना या मानना मेरा नहीं बल्कि सीएए को लेकर विपक्ष की बयानबाजी खुद ब खुद बयां कर रही है।

जिसके प्रमाण के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी, ममता बनर्जी या फिर केजरीवाल जैसे यूटर्न नरेश  के बयानों से छलक रही जलन अथवा तिलमिलाहट को साफतौर पर देखा जा सकता है।

कोई कानून के खिलाफ कानून का सहारा ले रहा है तो कोई सिर फुड़वा कर अपने राज्य की हमदर्दी के सहारे अपने दर्द को कम करना चाह रहा है तो कोई अपने ही घर के सामने हिन्दू शरणार्थियों के विरोध को लेककर तिलमिलाया हुआ है।

गौर करने वाली बात है कि जब बात रोहिंग्या मुसलमानों और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ की आती है तो हर बात पर संविधान की दुहाई देते हुए छाती पीटने वाले असदुद्दीन ओवैसी  के मुंह में दही जम जाता है।

ममता बनर्जी का मन थप्पड़ मारने का करने लगता है और सड़कों पर उतरकर खुलेआम हिन्दूजनमानस का अपमान करने से नहीं हिचकतीं।

राम का नाम लेने पर ऐसे बिदक जाती हैं जैसे कि किसी छुट्टा सांड को किसी ने लाल कपड़ा दिखा दिया हो।

और केजरीवाल के तो कहने ही क्या ? उनके लिए तो मुस्लिम घुसपैठिए उनके पूर्वजों अथवा उनकी अनुकम्पा से कम नहीं। उनका वश चले तो मुस्लिम घुसपैठियों की बस्तियों में जाकर संडास साफ कर दें ताकि वह हमेशा उन्हें सत्ता की चाशनी चटाते रहें।

kejriwal, mamta and owaisi on CAA.

लेकिन बात जब हिन्दू शरणार्थियों की आती है तो हिन्दू, सिख शरणार्थी केजरीवाल को पाकिस्तानी और बांग्लादेशी दिखने लगते हैं, आतंकी नजर आने लगते हैं उन्हें लगता है कि हिन्दू शरणार्थियों के कारण कहीं उनके दौंनों बच्चों को मिलने वाली सरकारी नौकरी पर ये हिन्दू शरणार्थी कहीं डाका न डाल दें जिससे कि उनके बच्चे बेरोजगार रह जायें।

कुल मिलाकर हालांकि विपक्ष के अलग-अलग नेताओं के बयानों के स्तर का कोई स्तर भले ही नजर न आता हो लेकिन केजरीवाल के बयानों को लेकर यदि ये कहा जाए कि उन्होंने तो स्तरहीनता को भी शर्मशार कर दिया तो संभवतः यह कुछ गलत न होगा।

दिल्ली जैसे राज्य का कई बार का मुख्यमंत्री के इस तरह के स्तरहीन बयान बेहद ही चिंतनीय भी हैं और निंदनीय भी।

कमाल की बात तो उस समय देखने को मिली जब आन्दोलनजीवी के रुप में अवतरित, अभिव्यक्ति की आजादी का ढिंढोरा पीटने वाले, बात-बात पर धरना-प्रदर्शन करने वाले केजरीवाल को हिन्दू शरणार्थियों का उनके घर के बाहर प्रदर्शन इतना बुरा लगा कि अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने वाले शरणार्थी उन्हें पाकिस्तानी और आतंकी नजर आने लगे।

रोहिंग्या मुसलमानों को पक्के मकान, राशनकार्ड, आधारकार्ड देने की हिमायत करने वाले केजरीवाल को हिन्दू शरणार्थियों की जगह जेल नजर आती है।

सवाल तो पूछना ही होगा कि आखिर इतनी बेशर्मी और इतना दोगलापन केजरीवाल के रक्त की गुणवत्ता का कमाल है या फिर सत्ता की चाशनी का मधुमेह रोग जिसने केजरीवाल को इंसान कहने लायक भी नहीं छोड़ा और कुलघाती बनने की राह पर धकेल दिया है।

निश्चित रुप से व्यक्तिगत तौर पर मैं अरविन्द केजरीवाल द्वारा हिन्दू शरणार्थियों को लेकर दिये गये बयान की घोर निंदा करता हूं और कहता हूं कि ये देश केजरीवाल की पुश्तैनी जागीर नहीं बल्कि हर हिन्दू भाई-बहनों का है चाहे वह विश्व के किसी भी देश में प्रवास करते हों। …….वन्देमातरम्

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