मनीश चतुर्वेदी की कलम से…
किसी ने सच ही कहा है कि कहै नीति करै अनीति-इसी का नाम है राजनीति।
अर्थात नीति की बात करके अनीति के सहारे अपनी कुर्सी को बचाये रखने का नाम ही राजनीति है और ये कहावत नीतिश बाबू ने एक बार फिर चरितार्थ करके साबित कर दी।
इतना ही नहीं नितीश बाबू ने 9वीं बार मुख्यमंत्री बनकर एक ऐसा रिकार्ड भी अपने नाम कर लिया जो देश में आज तक किसी भी नेता के नाम नहीं है और संभवतः कभी हो पायेगा।
लेकिन इतना तो तय है कि नीतिश ने अपनी राजनीति पर शोधकर्ता छात्र-छात्राओं के लिए एक नये विषय को स्थापित अवश्य कर दिया है संभवतः उस विषय का नाम होगा कि कुर्सी पर कब्जा।
निश्चिततौर पर इसमें किंचिंत मात्र भी संदेह नहीं किया जा सकता कि नीतिश कुमार की दूरदर्शी सोच और उनके गणित की काट शायद ही किसी राजनैतिक दल अथवा नेता पर हो। क्योंकि यह एक दिलचस्प स्थिति है कि भूत, वर्तमान दोंनों में ही प्लेटफार्म कोई भी क्यों न रहा हो लेकिन कुर्सी पर काबिज हमेशा नीतिश कुमार ही रहे हैं।
गौर करने वाली बात ये भी है कि जहां एक ओर पूरा देश मोदी और अमित शाह के चक्रव्यूह का कायल है और उनकी राजनैतिक सोच की तारीफ करते नहीं थकता ऐसे महारथी खिलाड़ियों का ताल ठोककर विरोध करके कुर्सी को बनाये रखना और फिर उन्हीं के हाथों से अपनी ताजपोशी कराना किसी कच्चे खिलाड़ी का काम तो हो नहीं सकता।
ये पूरा देश जानता है और राजनैतिक दल तो चीख चीख कर कहते हैं कि मोदी का विरोध करने का मतलब है अपना राजनैतिक भविष्य समाप्त कर देना। बाबजूद इसके नीतिश कुमार द्वारा मोदी की गोद में बैठकर मोदी की दाड़ी से खेलने वाली कहावत भी चरितार्थ करके दिखा दी है।
कल तक मोदी को मुंह भर-भरकर कोस रहे नीतिश कुमार ने मोदी के ही घर में सेंधमारी कर दी या फिर ये कहें कि भाजपा को मजबूर कर दिया उन्हें वापस एनडीए में लेने के लिए या फिर ये कहना भी गलत न होगा कि नीतिश कुमार ने खुद ही एनडीए की दहलीज से बाहर पैर रखा था और जिस विश्वास से बाहर गये उसे अधिक विश्वास के साथ एनडीए को गेट खोलकर ऐसे वापस आ गये मानो कभी गये ही न थे।
हालांकि राजनीति में यह कहा गया है कि इसमें दुश्मनी का कोई स्थान नहीं और कोई दरवाजा किसी के लिए कभी बन्द नहीं होता।
लेकिन नीतिश कुमार की वापसी से जुड़ा यह घटनाक्रम उस समय चौंकाने वाला अवश्य हो जाता है जबकि स्वयं मोटा भाई अमित शाह द्वारा भरी सभा में हुकार भरते हुए नीतिश को चेतावनी दी थी कि उनके इस कृत्य के बाद उनके लिए एनडीए के रास्ते हमेशा के लिए बन्द हो चुके है। बाबजूद इसके नीतिश बाबू की इनती शानदार तरीके से वापसी निश्चिततौर पर भारतीय राजनीति में एक शोध का विषय बनकर अवश्य रह गया है।