सांकेतिक भाषा के धनी हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, समुन्दर के अन्दर मोर पंख का क्या है संकेत ?

नरेन्द्र मोदी के सारथी होंगे श्री कृष्ण ?

मनीष चतुर्वेदी ”मनु की कलम से”…

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जिस तरह से अपनी स्पष्टवादिता और धाराप्रवाह बोलने में माहिर हैं ठीक वैसे ही मोदी एक और भाषा के धनी हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि वह हिन्दी बोलने से ज्यादा गुजराती भाषा के धनी हैं तो ऐसा नहीं है।

क्योकि मैं जिस भाषा की बात कर रहा हूं वह एक ऐसी भाषा है जो कि बोली तो जाती है लेकिन सुनाई नहीं देती उसे सिर्फ देखा जा सकता है और उस भाषा का अर्थ सुनने के लिए उसे समझना की एक मात्र विकल्प है।

जी हां इस भाषा को हम सांकेतिक भाषा के नाम से जानते हैं जिसमें हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को महारत हासिल है जिसके प्रमाण आये दिन हमें देखने को मिल जाते हैं। अन्तर सिर्फ इतना है कि जिस समय वह अपनी इस भाषा का इस्तेमाल करते हैं उसे हम समझ नहीं पाते और जब उसके परिणाम सामने आते हैं तो हम उस संकेत को अक्सर भूल चुके होते हैं।

अब बात चाहे उनके विदेश दौरे की हो या फिर स्वदेशी दौरे की।

जग जाहिर है कि उनका कोई भी दौरा परिणाम विहीन नहीं होता उनके दौरे के पश्चात कुछ ही समय में वहां से जुड़ी कोई न कोई योजना अथवा कुछ ऐसा नया परिणाम सामने आता है कि हर भारतीय का सीना चौड़ जाता है।

मुस्लिम देश में हिन्दू मन्दिर की स्थापना हो या आर्थिक व शैक्षिक स्तर पर नयी उपलब्धियां, एल.ए.सी ओर एल.ओ.सी पर मोदी के दौरे और उसके बाद इन जगहों पर इंफ्रास्टक्चर में आये भारी और नए बदलाव इस बात की गवाही चीख-चीखकर देते नजर आते हैं। 

ठीक वैसे ही उनके द्वारा की जाने वाली हर एक्टिविटी भी किसी आने वाले निर्णय अथवा परिणाम का कारक बनती है। इसका ताजा-तरीन उदाहरण हाल ही में प्रधानमंत्री के लक्ष्यद्वीप दौरे को समझा जा सकता है कि किस तरह से दशकों से गुमनामी के अंधेरों में अपने ही देशवासियों की उपेक्षा का दंश झेल रही लक्ष्यद्वीप की प्राकृतिक सौंदर्यता रातों-रात सुर्खियों में आ गयी जिसका प्रभाव राष्टीय एवं अर्न्तराष्टीय स्तर पर इस कदर पड़ा कि पलक झपकते ही मालद्वीप की सरकार की जड़ें हिलने लगीं, सरकार की नींद उड़ने लगी और देश का पर्यटक इस कदर जागा कि मालद्वीप की बुकिंग इस तरह से कैंसिल होने लगी जैसे कि आसमान में उड़ते परिन्दे के किसी ने पंख काट दिये हों।

अब एक बार फिर नरेन्द्र मोदी ने द्वारिका में स्थित समुद्र के नीचे डूबी द्वारिका का दौरा करके अपनी सांकेतिक भाषा के इस्तेमाल का कौशल प्रदर्शित किया है जहां उनके मोरपंख का अर्पण, पानी में ही तैरते हुए आसन लगाकर श्रीकृष्ण का ध्यान और आराधना की है निश्चित ही इसके पीछे भी प्रधानमंत्री द्वारा बिना कुछ कहे दिए जाने वाले संकेत से इंकार नहीं किया जा सकता। निश्चित ही इस संकेत के परिणाम भी शीघ्र ही देशवासियों को देखने के लिए मिल सकते हैं।

मेरा मानना है कि इस बार का ये संदेश चुनावी महाभारत 2024 से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है जिसमें इस चुनावी महाभारत में भी सारथी श्रीकृष्ण ही होंगे वो बात अलग है कि रथ पर सवार धनुर्धर का नाम अर्जुन की भूमिका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही होंगे।

नरेन्द्र मोदी की सांकेतिक भाषा को यदि डिकोड करें तो स्पष्टतौर पर देखा जा सकता है कि वह जो भी कार्य करते हैं उसकी प्रस्तावना हो या भूमिका परिणाम से महीनों पहले लिखनी शुरु हो जाती है और मोदी के इस संकेत की पृष्ठभूमि भी काफी पहले ही लिखनी शुरु हो चुकी है।

ऐसे में मथुरा अर्थात ब्रजभूमि के विकास में नरेन्द्र मोदी की भूमिका को लेकर यदि गौर किया जाए तो एक हर वर्ष होने वाले जिला स्तरीय ब्रज महोत्सव कार्यक्रम में उनका आगमन, मथुरा से ही सटे प्रदेश राजस्थान में जन्मीं मीरा को लेकर उनके भाव कहीं न कहीं उनके अगले कदम की ओर इशारा करते नजर आते है। जिसकी भूमिका के लिए मथुरा में ब्रज विकास तीर्थ परिषद की स्थापना, समूचे ब्रज में विकास की गंगा, नये प्रशासनिक भवनों का निर्माण, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मथुरा में दर्जनों दौरे के अलावा श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर, श्रीकृष्ण जन्मस्थान कॉरिडोर, वृन्दावन से गोकुल जल मार्ग की व्यवस्था, जैसी योजनाऐं महज एक संयोग तो नहीं हो सकता लिहाजा प्रधानमंत्री की नयी भूमिका को लेकर इन्हें यदि उनकी सांकेतिक भाषा के परिणामों की लिखी गयी भूमिका की संज्ञा दी जाये तो संभवतः कुछ गलत नहीं होगा।

यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी का समुद्र के अन्दर आत्ममंथन करना, द्वारिकाधीश की आराधना कर उन्हें मोरपंख अर्पित करना भी उनकी नयी भूमिका का संकेत है ऐसा में दावे के साथ कह सकता हूं।

मैं ये नहीं कहता कि प्रधानमंत्री को लेकर किया जा रहा मेरा ये दावा शतप्रतिशत सत्य ही होगा लेकिन यह भी सच है कि संभावनाओं से इंकार कभी नहीं किया जा सकता क्योंकि मोदी कब और क्या करने वाले होते हैं ये कोई नहीं जानता।              

लिहाजा मेरा पुनः यही मानना है कि श्रीकृष्ण की आराधना जो समुद्र के अन्दर से शुरु हुई है उसका अगला पड़ाव श्री कृष्ण की पटरानी श्री यमुना जी का ही तट होगा।

आशा है कि जल्द ही नरेन्द्र मोदी घोषणा करेंगे कि न ही मुझे यहां किसी ने भेजा है और न मैं यहां आया हूं मुझे तो द्वारिकाधीश ने बुलाया है।

जिसके चलते यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि नरेन्द्र मोदी की इस बार बतौर सांसद कर्मभूमि मथुरा ही होगी।

Author

Leave a Reply

Verified by MonsterInsights