हल्द्वानी हिंसा पर ओवेसी और मदनी की चुप्पी, हिंसा का मौन समर्थन नहीं तो और क्या है ?

क्या ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होना चाहिए ?

मनीष चतुर्वेदी की कलम से……….

देवभूमि उत्तराखण्ड की पहचान न सिर्फ धर्मनगरी के रुप में जानी जाती है बल्कि यदि ये कहें कि देवभूमि की संस्कृति, वहां का वातावरण, प्राकृतिक व पर्वतीय श्रंखलाओं की गोद में पलने वाले प्रेम और सौहार्द भी देवभूमि की एक महत्वपूर्ण पहचान है लेकिन गुरुवार को मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक कट्टरवादिता का जो घिनौना और हैवानियत भरे षड़यन्त्र का प्रदर्शन किया निश्चिततौर पर वह किसी धर्म की सोच तो नहीं हो सकती।

ऐसा कृत्य तो सिर्फ और सिर्फ हैवानों अथवा लुटेरों द्वारा ही किया जा सकता है जैसा कि हल्द्धानी के बनभूलपुरा में किया गया। जहां धार्मिक कट्टरता के नाम पर न सरकारी अधिकारियों को बख्शा गया, और न महिला पुलिसकर्मियों को। ऐसा लग रहा था मानो हैवानों की बस्ती में इंसानों को घेर लिया गया हो।
कहते हैं कि भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती लेकिन बनभूलपुरा में तो भीड़ की शक्ल भी थी, उनके आशियाने भी थे और पूरी की पूरी बस्ती भी। जिसने हिंसा के माध्यम से अपनी हैवानियत का परिचय भी दिया।
निःसन्देह ऐसे दंगाईयों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए और ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि भविष्य में कभी इस तरह की हैवानियत करने की तो दूर, इस तरह की बात सोचने में भी ये उपद्रवी हजार बार सोचें।
लेकिन सही मायने में क्या इनको बरगलाने वाले ओवेसी जैसे राजनेता और मदनी जैसे धार्मिक गुरु असली मुजरिम नहीं है।

इतनी बड़ी हिंसा के बाद भी आज इनलोगों के मुंह में जिस तरह से दही जमा हुआ है और ये लोग चुप्पी साधे हुए हैं निश्चिततौर पर ये हिंसा इन्हीं जैसे लोगों की भड़काउ बयानों का परिणाम है।
गौरतलब है कि हाल ही में वाराणसी में जिला न्यायालय द्वारा ब्यास जी के तहखाने में पूजा की अनुमति का विरोध करते हुए मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता द्वारा धमकी भरे लहजे व शब्दों में कहा गया था कि अब तक उन्होंने अपनी कौम के लोगों को रोका हुआ था लेकिन अब नहीं रोकेंगे, अमन चैन की कोई अपील नहीं करेंगे।
हालांकि उनकी इस धमकी का असर वाराणसी में तो देखने को नहीं मिला लेकिन उस भड़काउ बयान का असर साफतौर पर हल्द्वानी और बरेली में साफतौर पर देखा गया जिसके चलते महज़ एक अवैध निर्माण को गिराने गयी टीम पर किस तरह से हैवानियतभरी प्रतिक्रिया मुस्लिम समुदाय द्वारा की गयी।
कितने कमाल की बात है कि हिन्दू जब हिन्दुत्व की बात करता है तो वह सांप्रदायिक हो जाता है लेकिन यदि मुसलमान इस्लाम के नाम पर किसी हिन्दू की गर्दन भी कलम कर दे तो वह धर्म और इबादत का मसला है।
आखिर ये कौन दोगुले और दो मुंहे लोग हैं जो एक मुंह से कहते हैं कि इस्लाम अमन और चैन सिखाता है वहीं दूसरे मुंह से इस्लाम खतरे के नाम पर किसी की जान लेने से तनिक भी नहीं हिचकते, दंगा करना,आगजनी करना,पत्थरबाजी करना जिनके लिए सामान्य सी प्रतिक्रिया भर होती है।
चौंकाने वाली बात तो यह है कि यही धर्म के ठेकेदार टीवी डिबेट में ऐसे पेश आते हैं मानो कि इन लोगों से ज्यादा अमनपसंद व्यक्ति और धर्म इस पूरे संसार में कोई है ही नहीं।
ये किसी को पूजा न करने दें तो ये इनका मजहबी अधिकार और यदि सरकार यदि कानूनी दायरे में इनके द्वारा बनाये गये अवैद्य निर्माण को तोड़े तो इस्लाम खतरे में… ?
आखिर कब तक यह चलेगा ?
आखिर कब होगा इस आतंक का अंत ?
आखिर कब तक इन दोमुंहे सांपों को आजाद घूमने दिया जायेगा ?
आखिर अब चुप्पी क्यों साधे बैठे हैं ओबेसी और मदनी जैसे बदजुबान और भड़काउ भाषण देने वाले राजनेता व धर्मगुरु ?
मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि क्या इस हिंसा को लोकतांत्रिक आन्दोलन कहा जा सकता है ?
क्या बनभूलपुरा और बरेली के प्रदर्शनों और आतंक के लिए इन नेताओं और धर्मगुरुओं के भड़काउ भाषणों और बयानों को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए ?
क्या सरकार को इनके खिलाफ राष्ट द्रोह और धार्मिक उन्माद फैलाने का मामला दर्ज होकर कार्यवाही नहीं होनी चाहिए।
आखिर कब तक ये देश ऐसी हैवानियत का गवाह बनेगा ?
अब ये सब बन्द होना चाहिए और केन्द्र और संबधित प्रदेश सरकारों को संयुक्त रुप से ऐसे जहरीले नागों के जहर को निकालने का इंतजाम करना होगा अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब मुगल आक्रांताओं के बहशीपन का दंश एक बार फिर मां भारती के आंचल को रक्तरंजित कर सकता है ।
क्योंकि बड़े बुजुर्गों ने सच ही कहा कि कि बाहर से आने वाले दुश्मनों से निपटा जा सकता है और सतर्क भी रहा जा सकता है किन्तु घर के अन्दर पल रहे आस्तीन के सांप से बचना नामुमकिन है ।
कोई पता नहीं कि वह कब आपको डस लेगा।
वन्दे मातरम।

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