पहले नेहरु अब राहुल की ताजपोशी के लिए कांग्रेस चाहती है देश का बंटबारा ?
मनीष चतुर्वेदी की कलम से………
कर्नाटक सरकार में उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के भाई व कांग्रेस सांसद डी.के. सुरेश के अलग देश की मांग संबधी बयान के बाद जहां दोंनों सदनों में भूचाल सा आ गया वहीं दूसरी ओर संभवतः देश में एक नयी बहस को हवा देने की कोशिश की जा रही है।
ये बयान सन् 1947 के उस काले दिन की याद दिलाता है जबकि जिन्ना और नेहरु की ताजपोशी के लिए देश के दो टुकड़े दिये गये थे और इस षड़यन्त्र को जामा पहनाया गया था धर्म के आधार पर बंटबारा करने का।
कांग्रेस सांसद के इस आपत्तिजनक और ज्वलनशील बयान के बाबजूद सोनिया गांधी व राहुल गांधी की चुप्पी की खनक स्पष्टतौर पर सुनी जा सकती है।
हालांकि यह चुप्पी बेहद आश्चर्यजनक है बाबजूद इसके यह कहना भी गलत नहीं होगा कि अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए अपने आप को सत्ता में लाने का एक मात्र यही विकल्प शेष रह गया है जिसके चलते एक मां अपने बेटे की ताजपोशी का सपना देख रही है अतः इसमें चौंकने वाली कोई बात भी नहीं, किन्तु इस चाहत को पूरा करने का तरीका अवश्य ही विचारणीय हो सकता है।
सही मायने में देखा जाये तो सत्ता से दूर रहने का दर्द या ये कहें कि सत्ता से बेदखली के दंश होने वाला दर्द भला कांग्रेस से ज्यादा खासकर गांधी परिवार से ज्यादा और कौन महसूस कर सकता है।
140 करोड़ की आबादी वाले देश में जिनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था, सरकारों को बनाना और मिटाना जिस गांधी परिवार के लिए पल भर का खेला भर था ऐसा परिवार आज सत्ता के सिंहासन पर बैठना तो दूर की बात, सत्ता की दहलीज से भी दूर है ऐसे में इनके दर्द को भला कोई और क्या जान सकता है इसे तो बस गांधी परिवार की जान सकता है जिसके यहां पैदा होने वाला व्यक्ति अथवा हर पीढ़ी का कोई एक व्यक्ति सांसद/प्रधानमंत्री बनने की गारंटी लेकर पैदा होता था।
गांधी परिवार की आज की उनकी राजनैतिक दुर्दशा दिशाहीन दशा का प्रमाण है।
कहते हैं कि बुजुर्गों की कहावतें कभी गलत नहीं होती लिहाजा आज के राजनैतिक परिदृश्य को देखकर एक कहावत याद आती है कि
दगा किसी का सगा न होता – नहीं मानो तो कर देखो।
जिस-जिस ने भी दगा किया हो -उसका घर उजड़ा देखो।