मनीष चतुर्वेदी ‘मनु’ की कलम से………
लोकसभा 2024 के चुनावों की आहट के साथ विपक्षी नेताओं की भाजपा के साथ कदमताल देश में एक नये राजनैतिक वातावरण और राजनीति के भविष्य की नई इबारत लिखने को तैयार है।निश्चिततौर पर हालातों की स्यायी से भरी राजनैतिक कलम से लिखी जा रही ये नई इबारत आने वाली पीढ़ियों के लिए भले ही एक ऐतिहासिक परिवर्तन कहलायी जायेगी लेकिन डर ये भी है कि कहीं इस राजनैतिक इतिहास की रचियता प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा का सच्चा सिपाही अर्थात भाजपा कार्यकर्ता के लिए यह इतिहास काली परछाई न बन जाये या फिर ये कहें कि उसके राजनैतिक जीवन की एक दर्दनाक कहानी न बन जाए।जी हां मेरा इशारा वर्तमान राजनीति में चल रही उठा-पटक, दलबदल की राजनीति के चलते बागियों की शरणस्थली बनती जा रही भारतीय जनता पार्टी से है।
निश्चिततौर पर जिस तरह से देश की हर राजनैतिक पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के लिए भारतीय जनता पार्टी पहली पसंद बनती जा रही है। यह देखकर मेरी ये शंका और बलबती होती जा रही है कि यदि यही क्रम चलता रहा तो भाजपा के सांगठनिक ढांचे का आखिर क्या होगा ?
1. क्या भाजपा के सांगठनिक ढांचे में आयातित नेता फिट बैठ सकेंगे ?
2. क्या भाजपा के अनुशासनपूर्ण वातावरण में इन विपक्षी नेताओं का सांस लेना संभव हो पायेगा ?
3. क्या कल तक भाजपा के आदर्श व्यक्तित्वों को कोसने वाले ये अन्यदलीय नेता पुष्पांजलि अर्पित कर पायेंगे ?
4. भाजपा को नाथूराम गोडसे की पार्टी कहने वाले ये राजनेता क्या नाथूराम गौडसे के विचारों के साथ कदमताल कर पायेंगे ?
5. कल तक गांधी परिवार अथवा नेहरु को आदर्श मानने वाले क्या भाजपा के सुर में सुर मिलाकर भरे सदन में अथवा चुनावी सभाओं के मंच पर खड़े होकर गांधी परिवार या नेहरु को निशाने पर ले पायेंगे ?
6. कल तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए न जाने कैसे-कैसे अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करने वाले ये अवसरवादी राजनेता मोदी के आगे सर झुकाकर उनका अभिवादन कर पायेंगे ?
और अंत में सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा सवाल ये कि
7. भाजपा के लिए अपने जीवन के कई दशकों को समर्पित कर देने वाले भाजपा कार्यकर्ता क्या इन विपरीत राजनैतिक संस्कार और संस्कृति में नहाए आयातित गैरभाजपाई राजनेताओं के साथ अपना स्थान बांट पाना एक सच्चे भाजपाई के लिए संभव हो पायेगा।
दरअसल मेरे मन में ऐसे न जाने कितने सवाल हैं जो कि भाजपा और उसके सांगठनिक ढांचे के भविष्य के लिए एक अनकही-अनजानी सी किन्तु डरावनी सी तस्वीर उकेरते नजर आ रहे हैं।
जिसके आधार पर मेर मन में उठ रहे सवालों का बबंडर चीख-चीख कर बड़े दयाभाव से भाजपा के भविष्य की दर्दनाक कहानी सुनाते हुए भविष्य की तस्वीर दिखा रहा है कि यदि भारतीय जनता पार्टी अपने खेमे में शरणार्थी कैम्प लगाकर आयातित नेताओं को आश्रय देती रही तो वो दिन दूर नहीं जब अपना सबकुछ पार्टी के लिए न्यौछावर करके भाजपा को इस मुकाम पर पहुंचाने वाला भाजपा कार्यकर्ता अपने ही घर में मेहमान बनकर रह जायेगा।
अपनों के ही बीच बेगानों की तरह पिछली पंक्ति में बैठा नजर आयेगा और सोचेगा कि हाय….क्या इसी दिन उन्होंने अपना सबकुछ भारतीय जनता पार्टी को समर्पित कर दिया कि अवसरवादिता की चादर ओढ़े विपक्षी नेता आयेंगे और हमें हमारे ही आसन से अपदस्थ करके बैठ जायेंगे और हम बस दर्शक बने अपने इस अपमानभरे अंत के साक्षी बनेंगे।
तमाम सवालों के बीच एक सवाल मेरा सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से है कि अपनी तमाम गारंटीयों के साथ……
8. क्या वह यह गारंटी भी दे पायेंगे कि चुनावी मौसम की इस बरसात में ये चुनावी मेंढ़क बारिश के बाद पलट कर गायब नहीं होंगे अर्थात पूर्व की भांति अपनी घर वापसी नहीं करेंगे ?
ये वो सवाल हैं जो कि संभवतः हर भाजपाई के दिल और दिमाग में इस समय हर पल हथौड़े की चोट मार रहे होंगे किंतु अपने अनुशासित संस्कारों के वशीभूत न कह पा रहे हैं और न ही कुछ कर पाने की स्थिति में हैं।
कुल मिलाकर 370 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा द्वारा अपनायी जा रही साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति की मंझधार में फंसे भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए इस शंका और संभावनाओं से भरे दुःस्वप्न और धर्मसंकट के बारे में सोचकर बॉलीबुड का एक फिल्मी डायलॉग याद आ रहा हैं जो कि संभवतः भाजपा के इन सच्चे सिपाहियों के आशंका भरे भविष्य पर सटीक बैठता नजर आता है कि…..
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था।
अपनी तो कश्ती भी डूबी वहां जहां पानी कम था।