संपादकीय…….मनीष चतुर्वेदी ‘‘मनु’’ की कलम से ।
बात जब प्रभु राम की होती है या कांग्रेस द्वारा श्री राम और राममन्दिर निर्माण को लेकर किये जा रहे विरोध की होती है तो कांग्रेस को सबसे पहले मोहनदास करमचन्द गांधी याद आते हैं और गांधी जी की आड़ लेकर सीना चौड़ाकर कहते हैं कि हम गांधी जी के विचारों को मानने वाले हैं।
कांग्रेसी कहते हैं कि वो गांधी जी, जिन्होंने जो नाम अंतिम समय में अंतिम बार लिया था ये वही राम नाम है, जिसे आज पूरा देश ले रहा है, जो ये प्रमाणित करता है कि हम कभी रामविरोधी हो ही नहीं सकते।
अब इन अन्धभक्तों से या फिर ये कहें कि आत्ममुग्ध मूर्खों से कोई ये पूछे कि क्या प्रभु श्री राम का नाम गांधी के द्वारा पुकारे जाने के बाद प्रचलित हुआ ?
कोई इन लोगों से पूछे कि क्या श्री राम की पहचान गांधी से है या गांधी जी श्री राम को मानने वाले थे ?
कांग्रेसजनों के ऐसे तमाम दावों और बयानों के बाद यदि इनके दावों और बयानों की समीक्षा की जाये तो सिर्फ एक ही अर्थ समझ में आता है और वो ये, कि गांधी महान थे और श्री राम काल्पनिक जिनके नाम को पहचान इनके पूर्वज स्व0 मोहनदास करमचन्द गांधी द्वारा दिलाई गयी थी।
अब कांग्रेस नेताओं के इस तरह के बयानों को सुनने के बाद यदि ये कहा जाये कि वर्तमान में बह रही सनातनी लहरों के बीच अब कांग्रेस की तुष्टिकरण की नाव हिचकोले खाने लगी है अथवा डूबने के कगार पर है जिसके कारण कांग्रेस की बुद्धि न सिर्फ भ्रमित हो गयी है बल्कि कांग्रेस पार्टी को होने वाले राजनैतिक नुकसान की दहशत ने कांग्रेसी नेताओं को भयभीत कर दिया है तो ये कहना शायद कुछ गलत न होगा।